Hindi Poetry

                               नींद



तूने शायद मुझे जगाया होगा,
जाने से पहले शायद पुकारा होगा,
ना जाने वो कैसी नींद थी जो टूटी नहीं,
तेरे जाने का अहसास मुझे खाता रहा पर,
मैं यूँ ही सोती रही, सोती रही बस.....यूँ ही सोती रही..   

इतनी गहरी तो ना कभी सो पाई थी रातों को,
चैन मिलता तो सुकून से पलकों को आराम देती,
घडी दो घडी जहां ना कभी आराम मिला,
पता नहीं क्यों आज ये आंखें खुली ही नहीं,
तुझे जी भर देखा भी नहीं और आज ना जाने क्यूँ,  
चाहकर भी मैं नींद से जागी नहीं,

बुझ गए सारे चिराग, रात भी जाने को आई,
चाँद भी रह-२ कर रातों को करवटे बदलता रहा,
तूने शायद मुझे पुकारा तो होगा,
पल दो पल मुझे शायद निहारा भी होगा,
आज ना जाने कैसा था नशा इस रात का,
कि नींद मेरी टूटी नहीं,

दो कदम ज़रा एक बार फिर मेरी तरफ मोड़ ले,
देख ले बस एक बार फिर मुझे तू प्यार से,
शायद जी उठूं मैं फिर तेरे दीदार से,
टूट जाए शायद एक बार ये मौत कि जादूगरी !

                                                               By~Shreeja




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बेमतलब की बातें 

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ये सितारे, ये झिलमिल करती रातें,
ये जुगनू  और चाँद-तारों की बातें,
तुझ बिन बेमतलब हैं ये सारे, क्या दुनिया और नज़ारे,
क्या मांगूं तुझको खोकर, क्या चाहूं मैं तेरी होकर,
क्या मोल रहा अब और कैसा, तू ही ना हो
तो कैसा हँसना कैसा रोना,

ये झूठी हंसी और ये महफ़िल,
ये दोस्त सरे और हमसाये,
तुझ बिन बेमतलब हैं सारे, क्या जीवन और दिशायें,
कैसा जीना अब तेरे बिन, मर जाऊं न तेरे बिन,
होना था ये सौदा मेरे दिल का, तेरे बिन कुछ नहीं 
मैं क्यूँ ये ना जाना,

ये दरिया, ये काले बादल,
ये सावन और ये बरखा,
बेमतलब ये तुझ बिन सारे, क्या खुशिया और तराने,
बेमतलब का जीना अब तो, क्या खोना क्या पाना,
बिन तेरे पत्थर मैं तो,क्या सुनना और कहना,
एक भ्रम था मेरे जो टूटा,फिर क्यूँ देखूं
फिर से सपना,

ये शोहरत ये चाँदी-सोने,
ये मोती हीरे और सारे नगीने,
तुझ- बिन बेमतलब ये सारे, क्या दुनिया और नज़ारे,
बेमेल जीवन तुझ बिन सजना, कैसा हरजाई तू कैसा धोखा,
बेरंग हुए सब सपने मेरे, फिर कैसा श्रृंगार
और कैसा सजना.

ये चाहत और उनकी बातें,
प्यार की कसमें और फरियादें,
बेमतलब की अब सारी बातें, क्या रस्में और बीती यादें,
किसके लिए लूं अब सांसें, किसके लिए मैं सजना चाहूं,
जीना -मरना मेरा एक बराबर, तेरे बिन तो बस,
बेमोल ये जान मेरी दो कोड़ी की सांसें,
                                                               By~Shreeja




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ज़िन्दगी छोटी है बहुत


ना आज़मा मुझे इतना की अपनी साँसे गवां दूँ,
करे इंतज़ार मेरा तू और मैं ही ना रहूँ,
कभी फुर्सत मिले तुझे तेरी किताबों से तो,
मेरे सिराहने तकिये पर आंसुओं के निशां ढूँढना,
जहाँ-२ चला था तू वहां-२ मेरे 
दर्द से लिखा नाम अपना पढना कभी,
ना आज़मा मुझे इतना की अपनी साँसे गवां दूँ,
हटा दे हर आईने से सूरत मेरी की क्या फायदा
मेरे होने से जब दिल में मैं रही ही नहीं,
नहीं खूबसूरत मैं इतनी की तेरी दुनिया सजाती,
कह तो दिया होता जाने को 
तो न तेरे लौट आने का इंतज़ार ही करते,
क्या हुआ गर तेरी वफ़ा मुझ-सी नहीं क़ि हम जैसी
मोहब्बत करना तो अब तक किसी ने सीखा ही नहीं,   
नसीबो से मिलता है हम सा वफादार सनम तो ना जा ऐसे,
क़ि इंतज़ार हो जाएगा लम्बा
क्यूंकि नफरत के लिए ये ज़िन्दगी छोटी है बहुत.  

 

                                                        By~Shreeja




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काश 

काश! मेरे हाथों मेरी किस्मत की डोर होती,
लिखती खुद ही तकदीर अपनी
तुझे ही मैं जीवनसाथी लिखती,
ना फांसले कोई होते, ना बीच ये दूरियां होती,
भीगी पलकों में ना फिर कोई रात गुज़रती,
इन सूनी हथेलियों में तेरा ही हाथ लिखती
और लकीरों में तेरा ही प्यार लिखती,
ना आता कोई तुझसे पहले,
ना कोई तेरे बाद होता,
इस दिल में बस तेरी ही यादें बसती,
जो पहले था नाम लिखा उसे मिटाकर
 तेरा ही नाम लिखती,
काश! मेरे हाथों मेरी किस्मत की डोर होती,
तेरे नाम के बाद मैं अपना ही नाम लिखती,
ना तन्हाई कोई होती, ना कोई मज़बूरी होती,
अकेले खुद से ही ना फिर मैं तेरी बातें करती,
इन हाथों में बस तेरा ही साथ लिखती,
और हर साँस पर तेरा मैं नाम लिखती,
ना दिन होते मेरे रातों जैसे,
ना रातें इतनी लम्बी लगतीं,
बेचैन ना होती हर सुबह जब तेरी बाहों में सोती,
तेरे नाम से रोशन ये मेरी सुबह शाम होती,
तुझसे शुरू,तुझपर ख़त्म मेरी दुनिया होती,
तू होता तो ऐसा होता,
तू होता तो वैसा होता,
काश! मेरे हाथों मेरी किस्मत की डोर होती,
                                             By~Shreeja




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 राधे-श्याम




तनहा है क्यूँ ये मेरी जिंदगी
तेरे बिना क्यों चैन अब नहीं,
गुज़रा है क्यों तेरी यादो में
लम्हा मेरा सूनी रातो में,
पल-२ मुझको यूँ ही तडपाये,
मर जाऊं ना दिल ये घबराये,
करता है दिल क्यों इतना याद,
रोता है क्यूँ ये बार-२,
देखा तुझे दूर से दिल ने ही,
समझा लिया बीती बातों से ही,
सूना है ये तेरे बिन दिल अभी,
आजा सुना फिर मुझको धुन वही,
कान्हा तेरी ही मैं बन जाऊं,
मांगू और तुझे ही पा जाऊं,
घबराया क्यूँ ये दिल पहली बार,
रोता है क्यूँ ये बार-२,
लगती है क्यूँ बेगानी ज़िन्दगी,
जिंदा हूँ क्यूँ अब भी मैं कही,
जोड़ा है जो दिल से दिल को तो,
मोड़ लिया क्यूँ दिल कुछ कहो,
बिन तेरे ना कुछ मैं कर जाऊं,
याद में तेरी जोगन बन जाऊं,
तेरा हुआ दिल ओ राधे-श्याम,
ऐसा हुआ है पहली बार.

                              By~Shreeja




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   क्या नाम दूँ



गिरते हैं कभी यूँ पलकों से आंसू,
और आवाज़ में भी थरथराहट है,
ख़ुशी में भी भीग जाये पलकें अगर,
तो इसे मैं क्या नाम दूँ,
रोज़ ही टूट जाता है ये शीशे-सा दिल,
जिसमे एक चेहरे के हजारों साये हैं,
गर हो जाये एक भी ख्वाहिश जिंदा,
तो इसे क्या नाम दूँ,
किसी भी आहट पर थम जाती हैं सांसें,
और मचलने को दिल तैयार बैठा है,
मिली जो एक झलक अब तो,
इसे मैं क्या नाम दूँ,
पलकों पर सजाये हैं ये मोती,
और होटों पर अजब मुस्कराहट है,
सुना था दर्द में तो बहता है दरिया,
ख़ुशी में उमड़ आये समंदर,
तो इसे क्या नाम दू,
फ़रिश्ते उतरते है धरती पर,
ऐसा तो ना कभी देखा था,
देखा था तुझे अपना जैसा हे पाया था,
लगने लगे गर अचानक खुदा तू,
तो इसे मैं क्या नाम दूँ.
                               By~Shreeja




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    हमराही



इस तन्हाई में, इस खामोसी में,
कोई तो पास अपना होता,
जो थम लेता बाहों में जब ठोकर लगती राहो में,
रोक लेता आकर आंसुओ की लहरों को,
जब दर्द संभालना भी मुश्किल होता,
ना जाता छोड़ किसी कारन से वो,
कोई तो ऐसा हमदम होता,
जो रहता हर कदम साया बनकर,
और सपनो में सजाना भी ना मुश्किल होता,
जो सुनता दर्द इन आँखों का,
जब पास ना कोई अपना होता,
जो कर देता हरी-भरी मेरी दुनिया सारी,
जब पतझड़ का ही आलम होता,
जो चलता साथ हर मोसम में,
कोई तो ऐसा हमसाया होता,
जो बस जाता आठों पहर इन आँखों में,
जब सूनी ख्वाबों की ये गलियाँ होती,
करता प्यार दिलो जान लुटाकर,
जो हर तरीके से बस मेरा होता,
ना छोड़ जाता किसी बहाने से वो,
कोई तो ऐसा अपना भी हमराही होता.
                                         By~Shreeja




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मैं इतना क्यूँ उदास हूँ



मैं इतना क्यूँ उदास हूँ, कोई मुझे ये बता दे,
धड़कने हैं क्यों थमी हुई ज़रा ये समझा दे,
दूर तक जहाँ मेरी नज़र जाती है,
मिलते हैं वहाँ तक एक-दूसरे से ज़मीं और आसमां,
फिर क्यूँ लोग कहते हैं
नहीं है बने एक-दूसरे के लिए ये अम्बर और धरा,
कैसे आ जाती हैं दूरियां,कोई मुझे ये बता दे,
रूठा है क्यूँ मुझसे वो मेरा आसमां,
मैं इतना क्यूँ उदास हूँ, कोई मुझे ये बता दे,
धड़कने हैं क्यों थमी हुई ज़रा ये समझा दे,
वो कैसे नसीब लेकर आते हैं लोग,
बिन ढूंढे ही जो पा लेते हैं प्यार में रास्ता,
क्यूँ रहते लोग एक-दूजे से खफा-२,
बिन मांगे ही जिनकी क़ुबूल हो जाती है हर दुआ,
कैसे मनाऊ उसे, कोई मुझे ये बता दे,
ख़फा है क्यूँ मुझसे वो मेरा खुदा,
मैं इतना क्यूँ उदास हूँ, कोई मुझे ये बता दे,
धड़कने हैं क्यों थमी हुई ज़रा ये समझा दे,
मैं इतना क्यूँ उदास हूँ,कोई मुझे ये बता दे,
सांसे हैं क्यूँ रुकी हुई,ज़रा ये समझा दे.
                                                        By~Shreeja




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    गर  पता  होता ......



सोचा था तेरे दामन में
थोडा महफूज मेरा आशिया होगा
गर पता होता इसके हर तिनके पर
तबाही के मंजर का निशां होगा,

रह - रह कर तड़प उठ आती है आँखों में
और धड़कन की सांसे थम जाती हैं
तू क्या जाने  कैसे जीता है कोई
तूने तो बस दिल से अब तलक खेला है ,

सोचा था तेरे आगोश में
थोडा तो सुकून महसूस होगा
गर पता होता तेरे आने भर से
मेरी नींदों का भी पता ना होगा ,

दूर रह कर भी जी लेते इस आस में
कि कुछ तो याद तुझे मेरी आती होगी
तू क्या जाने दिल के रोने को
जो अब भी किसी और को सीने से लगाये बैठा है

सोचा था तेरे आने से
यूँ ही हँसते-2 फिर  संभल जाउंगी
गर पता होता तेरी राहो में आकर
मैं फिर गिर कर कभी संभल ना पाऊँगी .

                                                        By~Shreeja




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क्यों होता है......



















क्यों उससे नहीं मिलती तक़दीर
जिससे करते हैं प्यार ,
क्यों ढूँढती हैं उसे ही आंखें
जो हैं नज़रो से दूर ,
क्यों दिखता नहीं वो कभी
जो रहता है आँखों के पास ,
क्यों हजारों की भीड़ में भी
कोई एक ही होता है ख़ास ,
क्यों हर आहट पर रहती है
उसके ही आने की आस,
क्यों ढलती-सी लगती है शाम
उसके बिन क्यों सूनी रहती है रात,
क्यों कही कुछ लगता है भूला-2 सा
और मन रहता है खुद से रूठा-सा,
जिसका रहता है हर घडी इंतज़ार
क्यों उससे ही नहीं होता इकरार,
जो रहता है हर पल धड़कन के पास
क्यों तरसती है उसकी एक झलक को आंख,
क्यों भूल जाने को दिल रहता है मजबूर
जिसे पाने को ये रहता है बेताब,
क्यों कभी कुछ लगता है उलझा-२ सा
और लगता है तूफ़ान उठता-सा,
जो नहीं लिखा हाथों की लकीरों में
क्यों उससे ही होता है प्यार.
                                  By~Shreeja




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7 comments:

  1. लिखी है आप बहुत ही सुन्दर कविता
    ऐसी कविता मैं भी लिखना चाहता
    मगर इतना अच्छा लिखना नहीं आता!

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  2. :)Thank you bijja..you also can write just feel it and i know you write very well...very well than me :)

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  3. just awesome :)

    I missed ur poetry past days...

    speechless !!

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